Last updated on दिसम्बर 28, 2020
अभी हाल ही में यू. पी. बोर्ड और सी. बी. एस. ई. बोर्ड २०२० के रिजल्ट आये हैं। जिसमें अभ्यर्थियों के प्राप्तांक देखकर कोई भी सिर पर हाथ रखकर सोचने को मजबूर हो जाएगा। अब फिलहाल मैं इस सिस्टम या व्यवस्था पर टिप्पड़ी करने के योग्य नहीं हूँ। लेकिन आप खुद विश्लेषण कर सकते हैं अगर आपने २०१० के दशक या उसके आस-पास १०वीं और १२वीं की परीक्षा दी होंगी।
रिजल्ट तो हमारे जमाने में आते थे, जब पूरे बोर्ड का रिजल्ट 17 ℅ हो, और उसमें भी आप ने वैतरणी तर ली हो (डिवीजन मायने नहीं, परसेंटेज कौन पूछे) तो पूरे कुनबे का सीना चौड़ा हो जाता था।
दसवीं का बोर्ड…बचपन से ही इसके नाम से ऐसा डराया जाता था कि आधे तो वहां पहुंचने तक ही पढ़ाई से सन्यास ले लेते थे। जो हिम्मत करके पहुंचते, उनकी हिम्मत गुरुजन और परिजन पूरे साल ये कहकर बढ़ाते, “अब पता चलेगा बेटा, कितने होशियार हो, नवीं तक तो गधे भी पास हो जाते हैं”।
रही-सही कसर हाईस्कूल में पंच वर्षीय योजना बना चुके साथी पूरी कर देते…” भाई, खाली पढ़ने से कुछ नहीं होगा, इसे पास करना हर किसी के लक में नहीं होता, हमें ही देख लो… और फिर , जब रिजल्ट का दिन आता। ऑनलाइन का जमाना तो था नहीं, सो एक दिन पहले ही शहर के दो- तीन हीरो (ये अक्सर दो पंच वर्षीय योजना वाले होते थे) अपनी हीरो स्प्लेंडर या यामहा में शहर चले जाते। फिर आधी रात को आवाज सुनाई देती…”रिजल्ट-रिजल्ट”।
पूरा का पूरा मुहल्ला उन पर टूट पड़ता। रिजल्ट वाले अखबार को कमर में खोंसकर उनमे से एक किसी ऊंची जगह पर चढ़ जाता। फिर वहीं से नम्बर पूछा जाता और रिजल्ट सुनाया जाता… पांच हजार एक सौ तिरासी …फेल, चौरासी..फेल, पिचासी..फेल, छियासी..सप्लीमेंट्री !!
कोई मुरव्वत नही.. पूरे मुहल्ले के सामने बेइज्जती।
रिजल्ट दिखाने की फीस भी डिवीजन से तय होती थी, लेकिन फेल होने वालों के लिए ये सेवा पूर्णतया निशुल्क होती।
जो पास हो जाता, उसे ऊपर जाकर अपना नम्बर देखने की अनुमति होती। टोर्च की लाइट में प्रवेश-पत्र से मिलाकर नम्बर पक्का किया जाता, और फिर 10, 20 या 50 रुपये का पेमेंट कर पिता-पुत्र एवरेस्ट शिखर आरोहण करने के से गर्व के साथ नीचे उतरते।
जिनका नम्बर अखबार में नही होता उनके परिजन अपने बच्चे को कुछ ऐसे ढांढस बंधाते… अरे, कुम्भ का मेला जो क्या है, जो बारह साल में आएगा, अगले साल फिर दे देना एग्जाम। पूरे मोहल्ले में रतजगा होता।चाय के दौर के साथ चर्चाएं चलती, अरे … फलाने के लड़के ने तो पहली बार मे ही …
सच में , रिजल्ट तो हमारे जमाने मे ही आता था।
साभार: सोशल मीडिया