Last updated on जून 5, 2021
भारत की धरती, दुख सब हरती,
हर्षित करती, प्यारी है।
ये सब की थाती, हमें सुहाती,
हृदय लुभाती, न्यारी है।।
ऊँचा रख कर सर, हृदय न डर धर,
बसा सुखी घर, बसते हैं।
सब भेद मिटा कर, मेल बढ़ा कर,
प्रीत जगा कर, हँसते हैं।।
उत्तर कशमीरा, दक्षिण तीरा,
सागर नीरा, दे भेरी।।
अरुणाचल बाँयी, गूजर दाँयी,
बाँह सुहायी, है तेरी।
हिमगिरि उत्तंगा, गर्जे गंगा,
घुटती भंगा, मदमाती।।
रामेश्वर पावन, बृज वृंदावन,
ताज लुभावन, है थाती।
संस्कृत मृदु भाषा, योग मिमाँसा,
सारी त्रासा, हर लेते।
अज्ञान निपातन, वेद सनातन,
रीत पुरातन, हैं देते।।
तुलसी रामायन, गीता गायन,
दिव्य रसायन, हैं सारे।
पादप हरियाले, खेत निराले,
नद अरु नाले, दुख हारे।।
नित शीश झुकाकर, वन्दन गाकर,
जीवन पाकर, रहते हैं।
इस पर इठलाते, मोद मनाते,
यश यह गाते, कहते हैं।।
नव युवकों आओ, आस जगाओ,
देश बढ़ाओ, तुम आगे।
भारत की महिमा, पाये गरिमा,
बढ़े मधुरिमा, सब जागे।।
By: बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
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