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स्वदेशी कथन by रामप्रसाद बिस्मिल

Last updated on फ़रवरी 3, 2021

जिएँ तो बदन पर स्वदेशी वसन हो ।
मरें भी अगर तो स्वदेशी कफ़न हो ।।

पराया सहारा है अपमान होना, जरुरी है निज शान का ध्यान होना ।
है वाजिब स्वदेशी पे कुर्बान होना, इसी से है सम्भव समुत्थान होना ।।

लगन में स्वदेशी की हर मर्दो-जन हो ।
जिएँ तो बदन पर स्वदेशी वसन हो ।।

निछावर स्वदेशी पे कर मालो-जऱ दो , स्वदेशी से भारत का भंडार भर दो ।
रहें चित्र-से वह चकाचौंध कर दो, दिखा पूर्वजों के लहू का असर दो ।।

स्वदेशी हो सज-धज, स्वदेशी चलन हो ।
जिएँ तो बदन पर स्वदेशी वसन हो ।।

उठो कर्मवीरों ! तुम्हे कौन भय है, स्वदेशी का संग्राम तो शान्तिमय है ।
प्रथा पाप की पाप में आप लय है, विजय है, विजय है, तुम्हारी विजय हैं ।।

स्वदेशी हो पूजन, स्वदेशी भजन हो ।
जिएँ तो बदन पर स्वदेशी वसन हो ।।

करो प्रण की आज़ाद होकर रहेंगे, जहाँ में या बरबाद होकर रहेंग ।
सितमगर ही या शाद होकर रहेंगे, या हम शाहो-आबाद होकर रहेंग ।।

स्वदेशी हो ‘बिस्मिल’ स्वदेशी कथन हो ।
जिएँ तो बदन पर स्वदेशी वसन हो ।।

लगन में स्वदेशी की हर मर्दो-जन हो, स्वदेशी हो सज-धज, स्वदेशी चलन हो ।
स्वदेशी हो पूजन, स्वदेशी भजन हो, मरें भी अगर तो स्वदेशी कफ़न हो ।।

-साभार : रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा से

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