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मेरी कलम

सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो / निदा फ़ाज़ली

सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलोसभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो इधर उधर कई मंज़िल हैं चल…

हो गई है पीर पर्वत / दुष्यंत कुमार

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए। आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,शर्त लेकिन थी कि ये…

पृथ्वी का निर्माण (एक लोक कथा)

युगों पुरानी बात है. न धरती थी, न आकाश था. जल भी नहीं था. केवल एक निराकार थे. उन्हें कोई काम नहीं था. दिन भर बैठे…